POETRY
( Famous Ghazals Of Hilal Badayuni )
ग़ज़ल
1
मेरे गुमाँ से भी ऊंची उड़ान तक पहुंची ।
मेरी ग़ज़ल की ज़मीं आसमान तक पहुंची ।
वो बात जिसकी खबर तक न थी जमाने को ।
तुम्हारी वजह से दुनिया के कान तक पहुंची ।
तसव्वुरात की इमदाद हो गई हासिल ।
तुम्हारे वस्ल की हसरत उड़ान तक पहुंची ।
हमारे इश्क की तालीम ना मुकम्मल थी ।
मगर हमारी वफा इम्तिहान तक पहुंची ।
‘हिलाल’ और ज्यादा हो तेरा ज़ोरे क़लम ।
ये शायरी तेरी दिल की ज़बान तक पहुंची ।
ग़ज़ल
2
मुझे ये फख्र है तुमको ख्याल रहता है ।
तुम्हारे ज़हन में कोई हिलाल रहता है ।
अभी लगी ही नहीं शोहरतों की गर्म हवा ।
अभी से खून में इतना उबाल रहता है ।
हज़ार कोशिशें करके तुम इसको जोड़ो मगर ।
जो टूट जाता है उस दिल में बाल रहता है ।
फ़क़त मुझे ही नहीं गम जुदाई का उसकी ।
उसे भी मुझसे बिछड़कर मलाल रहता है ।
ये सब हमारी मोहब्बत का एक सदक़ा है ।
जो उसपे आज भी हुस्नो जमाल रहता है ।
ग़ज़ल
3
मेरे निकाह से पहले ये बात लिख देना ।
तुम अपने मेहर में मेरी हयात लिख देना ।
मेरी तमन्ना है हो जाऊं तुमसे मैं मंसूब ।
तुम अपना नाम मेरे साथ साथ लिख देना ।
सज़ा मिले न तुम्हें जुर्म ए बेवफाई की ।
हर एक जुर्म में तुम मेरा हाथ लिख देना ।
वो जिसका कोई नहीं और क्या लिखोगे उसे ।
तुम ऐसा करना मेरा दिल अनाथ लिख देना ।
तुम्हारे तजुर्बे दुनिया के काम आएंगे ।
हिलाल इश्क के सब तजरुबात लिख देना ।
ग़ज़ल
4
जिस पर जबीं झुकाई थी वो दर तलाश कर ।
जिस घर को तूने छोड़ा है वो घर तलाश कर ।
चांदी न सोना हीरा न गौहर तलाश कर ।
उक़बा में काम आए वो ज़ेवर तलाश कर ।
चाकू न सैफ बरछी न खंजर तलाश कर ।
जो हो सके तो अम्न का मंजर तलाश कर ।
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दूं ।
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर ।
परदेस में सुकून किसे मिलता है हिलाल ।
दिल का सुकून अपने ही घर पर तलाश कर ।
ग़ज़ल
5
समझें जो मेरे ग़म को वो अपने नहीं रहे ।
झूठे बहुत हैं शहर में सच्चे नहीं रहे ।
तूने तो अपनी ज़ीस्त भी कर ली बसर मगर ।
तुझसे बिछड़ के हम तो कहीं के नहीं रहे ।
हम खुश हुए सभी की तरक्की को देखकर ।
लेकिन तुम्हारी तरह सुलगते नहीं रहे ।
कल तो किसी भी राह में ख़ौफो खतर न था ।
महफूज़ आज शहर के रस्ते नहीं रहे ।
राहे वफा में मुश्किलें आई तो थीं बहुत ।
लेकिन हम अपनी राह बदलते नहीं रहे ।
जब से हयात अश्क नदामत से धोयी है ।
आईनए हयात पे धब्बे नहीं रहे ।
जो हुक्म ए वालदैन की तामील कर सकें ।
इस दौर में में हिलाल वो बच्चे नहीं रहे ।
ग़ज़ल
6
मैं दिल में जख्म उसके फिर सुलगता छोड़ आया हूँ ।
कि सहने गुलसिताँ में इक शरारा छोड़ आया हूँ ।
कड़कती धूप में बादल बरसता छोड़ आया हूँ ।
मैं उसकी आंख में अश्कों का दरिया छोड़ आया हूँ ।
बराये रोज़गार आया तो हूँ परदेस में लेकिन ।
किसी को घर की चौखट पर मैं रोता छोड़ आया हूँ ।
दिया लेकर चला हूं मैं जहां में रोशनी करने ।
मगर अपने घर आंगन में अंधेरा छोड़ आया हूं ।
अमीरों ने भुला डाला रिवायाते कदीमा को ।
मगर घर में गरीबों के मैं परदा छोड़ आया हूं ।
वो जिनके सीने में हर दम तअस्सुब रक़्स करता था ।
दिलों में उनके भी उल्फत का जज़्बा छोड़ आया हूं ।
निगाहे बद न पड़ जाए कहीं सय्याद की या रब ।
मैं अपने घोंसले में एक बच्चा छोड़ आया हूं ।
उसे महरूमिए क़ुर्बो वफ़ा का क्या हो अंदाज़ा ।
मैं उसके पास यादों का सहारा छोड़ आया हूँ ।
हिलाल इंसानियत जिस पर पशेमाँ होके रोती है ।
मैं वो गुलशन वो सहरा वो इलाका छोड़ आया हूँ ।
ग़ज़ल
7
रब ने अता किये हैं मुकद्दर अलग-अलग ।
होते हैं शोहरतों के भी मंज़र अलग-अलग ।
मायूस वो भी और परेशान में भी हूं ।
खायी बिछड़ के चोट दिलों पर अलग-अलग ।
इक घर को अपने खून से सींचा था बाप ने ।
बेटे ने पल में कर दिए दो घर अलग-अलग ।
दो लोग बनना चाहते थे मीरे कारवां ।
दोनों की जिद पे हो गए लश्कर अलग-अलग ।
शबनम बने हुए कभी शोला बने हुए ।
अश्कों के भी मिज़ाज हैं रुख पर अलग अलग ।
ज़ख्मी किया गया मुझे लफ़्ज़ों के वार से ।
होते हैं दोस्तों के भी खंजर अलग अलग ।
हर कोई कर रहा है नुमाइश वुजूद की ।
दरया अलग-अलग तो समंदर अलग-अलग ।
अंदाज़ सिर्फ तेरा नहीं मुनफ़रिद हिलाल ।
सारे सुखनवरों के हैं तेवर अलग-अलग ।
ग़ज़ल
8
मिजाज दर्द का खूगर इसी लिए तो है ।
गमे फिराक़ मुकद्दर इसी लिए तो है ।
तुझे खबर थी मेरा दिल है आईना जैसा ।
ये गुफ्तगू तेरी पत्थर इसी लिए तो है ।
पनाह ले न सका जो खुदा के घर में कभी ।
ज़माने भर में वो बेघर इसीलिए तो है ।
तुम्हें तो दोस्त बनाने का शौक था ही बहुत ।
तुम्हारी पीठ में खंजर इसी लिए तो है ।
तुम्हारी याद के बादल बरस रहे हैं यहां ।
ये आंसुओं का समंदर इसी लिए तो है ।
तुम्हारी नस्ल की हालत बिगड़ने वाली है ।
तुम्हारे हाथ में साग़र इसी लिए तो है ।
उन्हें बताओ बुजुर्गों का है करम इस पर ।
हिलाल अच्छा सुखनवर इसी लिए तो है ।
ग़ज़ल
9
वो जो मुझसे खफा नहीं होता ।
मैं भी उससे जुदा नहीं होता ।
काश रहबर मिला नहीं होता ।
मैं सफर में लुटा नहीं होता ।
हम तो कब के बिखर गए होते ।
जो तेरा आसरा नहीं होता ।
हम शराबी अगर नहीं बनते ।
एक भी मैकदा नहीं होता ।
जिस जगह कुर्बतें पनप जाएं ।
उस जगह फासला नहीं होता ।
आग नफरतों की जिसमें लग जाए ।
पेड़ फिर वो हरा नहीं होता ।
मंदिरों मस्जिदों पे लड़ते हो ।
क्या दिलों में खुदा नहीं होता ।
मसलहत कुछ तो है हिलाल इसमें ।
ज़लज़ला यूँ बपा नहीं होता ।
ग़ज़ल
10
फ़क़त मैं क्यूँ रहूँ रुसवा तेरी रुसवाई भी तो हो ।
सितमगर तेरी महफिल में शब् -ए-तन्हाई भी तो हो ।
तुझे पाने की ख्वाहिश में जो रख दे जान भी गिरवी ।
ज़माने में मेरे जैसा कोई सौदाई भी तो हो ।
मै तुमको बेवफा कहता हूँ तो इसमें बुरा क्या है ।
ये माना कि तुम अपने हो मगर हरजाई भी तो हो ।
मै कैसे डूब सकता हूँ वफ़ा के खुश्क दरिया में ।
तेरे दरिया -ए-उल्फत में कोई गहराई भी तो हो ।
शब् -ऐ -फुरक़त का हर लम्हा सितारे गिन के काटा है ।
बिछड़ के तुझसे इक पल को हमे नींद आई भी तो हो ।
मै कैसे मान लूँ तू हिज्र में रहता है नमदीदा ।
तेरी आवाज़ मेरी तरह से भर्रायी भी तो हो ।
मसर्रत के तराने क्या सुनायें साज़ -ए-ग़म पर हम ।
ख़ुशी के गीत गाने के लिए शहनाई भी तो हो ।
‘हिलाल’ अपने मुक़द्दर में नहीं था वस्ल -ए- जानाना ।
दुआ हमने बहुत की थी मगर बर आई भी तो हो ।
- माँ
मुझको पैरों पे खड़े होना सिखाया माँ ने ।
मेरे किरदार को आईना बनाया माँ ने ।
चाहे खुद कितनी ही रातों को वो भूका सोयी ।
मुझको इक रात भी भूका न सुलाया माँ ने ।
अपने हाथों से मेरे सर की बलायें लेकर ।
बद नज़र और बलाओं से बचाया माँ ने ।
मेरी हर ज़िद मेरी फरमाइशें पूरी करके ।
मेरा हर नाज़ ब सद नाज़ उठाया माँ ने ।
कोई शिकवा न कभी माँ की ज़बाँ पर आया ।
मेरे हर दर्द को सीने से लगाया माँ ने ।
तोहफए रब है माँ
मां के सदके में मिलती है बच्चों को जाँ ।
तोहफए रब है माँ – तोहफए रब है माँ
बोलना मुझको जिसने सिखाया था कल ।
जो मेरे नाज़ उठाती थी हर एक पल ।
आज आंखों से मेरी वो ओझल है क्यूं ।
उसके ग़म से मेरी आँख बोझल है क्यू ।
माँ की अज़मत का है ज़िक्र क़ुरआन में ।
मां की तारीफ फिर मुझसे क्या हो बयाँ ।
तोहफए रब है माँ -तोहफए रब है माँ ।
गोद मे लेके मुझको खिलाती थी वो ।
मेरी उंगली पकड़ कर चलाती थी वो ।
रोज़ मेरे लिए दुख उठाती थी वो ।
कोई शिकवा ज़बाँ पर न लाती थी वो ।
मैं अगर रूठ जाता मनाती थी वो ।
ऐसी ममता दुबारा मिलेगी कहाँ ।
तोहफए रब है माँ -तोहफए रब है माँ ।
तूने दिल अपनी माँ का दुखाया अगर ।
तुझसे नाराज़ होगा खुदा खासकर ।
हर कदम ठोकरें ही मिलेंगी तुझे ।
हर घड़ी मुश्किलें ही मिलेंगी तुझे ।
अपनी माँ को अगर तूने तकलीफ दी ।
हर इबादत तेरी जाएगी रायगां ।
तोहफए रब है माँ -तोहफए रब है माँ ।
गौर से आज तुम भी सुनो ऐ हिलाल ।
अपनी माँ का सदा तुम भी रखना ख्याल ।
फ़र्ज़ माँ की मुहब्बत का करना अदा ।
खुद भी करना अमल जो भी तुमने कहा ।
तुमने माँ को परेशान रक्खा अगर ।
तुमपे होगा न अल्लाह भी मेहरबां ।
तोहफए रब है माँ -तोहफए रब है माँ ।
औरत
औरत ने हर इक दौर में क्यूँ ज़ुल्म सहा है ।
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है ।
औरत ने ही माँ बनके हमें चलना सिखाया ।
औरत ने ही शौहर का हर इक नाज़ उठाया ।
औरत ने ही माँ बाप की इज्ज़त को बढाया ।
किरदार हों कितने भी मिली इससे वफ़ा है |
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
इस मुल्क को औरत की ज़रूरत जो पड़ी है ।
रजया ये बनी लक्ष्मीबाई ये बनी है ।
ये हीर है राधा है ये सीता है सती है ।
कुर्बानियों का इसको मिला कुछ न सिला है ।
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
मर्दों ने हवस के लिए कोठे पे नचाया ।
बाज़ार में भी बेचा इसे जिंदा जलाया ।
मजबूर समझ कर इसे दुनिया ने सताया ।
औरत का अब इस दौर में जीना भी सजा है ।
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
तफरीह का उन्वान समझते हो इसे तुम ।
इंसान है बेजान समझते हो इसे तुम ।
क्यूँ ऐश का सामान समझते हो इसे तुम ।
इस पर न करो ज़ुल्म खुदा देख रहा है ।
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
हर दौर की तखलीक का आगाज़ है औरत ।
हमदर्द है हमसाया है हमराज़ है औरत ।
नग्माते मुहब्बत का हसीं साज़ है औरत ।
अल्लाह की नेअमत है ये मख्लूके खुदा है ।
औरत है ये औरत यही बस इसकी खता है
मैं तेरा प्यार हूँ
बेमुरव्वत नहीं हूँ वफादार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ , मैं तेरा प्यार हूँ ।
ज़िन्दगी भर यूँ ही तुझको चाहूँगा मैं ।
उम्र भर साथ तेरा निभाऊँगा मैं ।
तेरे क़दमों में रख दूँगा हर इक खुशी ।
छोड़कर तुझको हरगिज़ न जाऊंगा मैं ।
तेरे इज़हार का तेरे इक़रार का ।
मैं तलबगार हूँ मैं तलबगार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।
तू मुझे देखकर मुस्कुराता था कल ।
भूल बैठा है तू वो हंसी सारे पल ।
जुस्तजू में तेरी दम न जाये निकल ।
आ मेरे साथ आ फिर से तू साथ चल ।
मेरी हर सांस देती है तुझको सदा ।
तू समझता है मैं तुझसे बेज़ार हूँ ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।
ये गलत है तुझे भूल बैठा हूँ मैं।
तेरी यादों में ही खोया रहता हूँ मैं ।
प्यार में कोई आयी नहीं है कमी ।
जैसा पहले था मैं अब भी वैसा हूँ मैं ।
इम्तिहाने मुहब्बत का कुछ ग़म नहीं ।
मैं वफादार था मैं वफादार हूँ।
मैं तेरा प्यार हूँ मैं तेरा प्यार हूँ ।
जाने जाँ
जाने जाँ जाने जाँ जाने जाँ
हमने दुनिया में देखे हैं लाखों हंसीं ।
कोई तुझसा हसीं हमने देखा नहीं ।
तुझको मुझपर यक़ी मुझको तुझपे यक़ी ।
राजे दिल , दिल मे तू रखता है क्यों निहाँ ।
जाने जाँ जाने जाँ जाने जाँ
तेरी ज़ुल्फ़ों की खुशबू का दीवाना मैं ।
तेरी आँखों की मस्ती का मस्ताना मैं ।
तू है शम्मे मुहब्बत तो परवाना मैं ।
तू अगर मिल गया मिल गया ये जहाँ
जाने जाँ जाने जाँ जाने जाँ
आँख की आस तू होंठ की प्यास तू ।
और महकता हुआ एक अहसास तू ।
ज़िन्दगी भर रहे बस मेरे पास तू ।
फासला हो न पाए कोई दरमियाँ ।
जाने जां जाने जां जाने जां
तेरे काँधे पे सर रखके सो जाऊं मैं ।
ये जहां भूल के तुझमे खो जाऊं मैं ।
ये दुआ है कि दीवाना हो जाऊं मैं ।
ऐसी प्यारी मुहब्बत मिलेगी कहाँ ।
जजाने जां जाने जां जाने जां
तेरे मिलने से मिलने लगी हर खुशी ।
तू मिला तो खिली मेरे दिल की कली ।
प्यार में तू न करना कभी दिल्लगी ।
अब तुझे छोड़कर जाऊंगा मैं कहाँ ।
जजाने जां जाने जां जाने जां
ज़िन्दगी भर रहे तू मेरे साथ में ।
हाथ तेरा रहे बस मेरे हाथ में ।
अब यही बात होगी मुलाक़ात में ।
तू जहाँ भी रहे मैं रहूँगा वहाँ ।
जाने जां जाने जां जाने जां
हमने इज़हारे दिल बस तुझी से किया ।
दूर मुझसे न जा तू मेरे पास आ ।
मुझसे नज़रें मिला राजे दिल मत छुपा ।
सिर्फ इक बार होंठों से कह दे कि हाँ ।
जाने जां जाने जां जाने जां
मुंतज़िर है हिलाल अब तेरी दीद का ।
ख्वाब इसने सजाया है उम्मीद का ।
चांद कब दिख सकेगा इसे ईद का ।
होगा इसके लिए कब सुहाना समां ।
जाने जां जाने जां जाने जां
क़ौमी तराना
एक तारीख नयी फिर से बनानी होगी ।
देश की लाज हमें मिलके बचानी होगी ।
हर घड़ी रहता है आंखों में यही इक सपना ।
सबसे अच्छा हो जहां भर में ये भारत अपना ।
खूँ शहीदों ने बहाया था वतन की खातिर ।
अपना घरबार लुटाया था वतन की खातिर ।
बिस्मिल अशफ़ाक़ ने दी जान वतन की खातिर ।
हम भी हो जाएंगे क़ुरबान वतन की खातिर ।
देश की लाज हमें मिलके बचानी होगी ।
तुम हमेशा के लिए दिल से बुराई छोड़ो ।
जो मुहब्बत के हैं रिश्ते न उन्हें तुम तोड़ो ।
हम जो आपस में लड़ेंगे तो बुराई होगी ।
चाल ये तो किसी दुश्मन ने चलाई होगी ।
हमको हर हाल में दुश्मन को मिटाना होगा ।
अपनी मिट्टी का हमें क़र्ज़ चुकाना होगा ।
देश की लाज हमें मिलके बचानी होगी ।
कुदरत
सबसे आला बस उसी की जात है ।
ज़िन्दगी और मौत जिसके हाथ है ।
सबका मालिक है वो ही मुख्तार है ।
उसकी मर्जी से ही बेड़ा पार है ।
ये जहाँ पल में मिटा सकता है वो ।
सबको मिट्टी में मिला सकता है वो ।
ध्यान में ये बात रखियेगा हुज़ूर ।
जो बना है खत्म वो होगा ज़रूर ।
ये भी सोचा है कभी ऐ मोहतरम ।
हमपे उसके हैं बहुत सारे करम ।
उसने इंसां के लिए सब कुछ दिया ।
लेकिन इंसां किसलिए पैदा किया ।
दुनिया मे इंसान के कुछ फ़र्ज़ हैं ।
उसपे मालिक के बहुत से क़र्ज़ हैं ।
इसलिए हम काम कुछ ऐसा करें ।
ज़िन्दगी में नाम कुछ ऐसा करें ।
कुछ तो बाकी छोड़ दें अपना निशाँ ।
ताकि हमको याद रक्खे ये जहाँ ।
बात पर मेरी तुम अब कर लो यक़ी ।
प्यार से बढ़कर जहाँ में कुछ नहीं ।
मैं दुआ करता हूँ मौला से यही ।
काम सबके आये मेरी ज़िंदगी ।
Two Lines Poetry
मुझे ये फख्र है तुमको ख़्याल रहता है ।
तुम्हारे ज़हन में कोई हिलाल रहता है ।
***
मेरे निकाह से पहले ये बात लिख देना ।
तुम अपने मेहर में मेरी हयात लिख देना ।
******
कहने पे तेरे माँ को भला कैसे छोड़ दूं।
तू ऐसा कर कि दूसरा शौहर तलाश कर ।
***
सिर्फ रिश्ता नहीं एक एहसास है ।
दूर होकर भी माँ तू मेरे पास है ।
***
सारे जहाँ में मेरे सुकूँ का निशां नहीं ।
सब कुछ है मेरे पास मगर मेरी माँ नहीं ।
***
मौजूद मेरे दिल मे जो ज़ख्मों के दाग़ हैं ।
वो एक बेवफा के सितम के चराग़ हैं ।
***
मौजूद मेरे दिल में तुम्हारी जो याद है ।
ये मेरी मिल्कियत है मेरी जायदाद है ।
***
मज़ा तो जब है कि दिल का अंधेरा मिट जाए ।
घरों में लाख चरागाँ किया करे कोई ।
***
तुमने जो मेरे दिल को परेशान किया है ।
ये घर तो तुम्हारा था जो वीरान किया है ।
***
तुम्हारे सामने जज़्बात सारे खोल सकता हूँ ।
जो सुनना चाहते हो तुम मैं वो भी बोल सकता हूँ ।
***
ऐ दुनिया मुझको अपने दिल के जज़्बात दबाने हैं ।
अब तू ऐसी चीज़ बता जो पत्थर से भी भारी हो ।
***
गरीब शख्स को मिलता नहीं किसी भी तरह ।
ये इश्क़ हो गया सरकारी नौकरी की तरह ।
***
शजर पे इश्क़ के पत्ता हरा नहीं उतरा ।
मेरी कसौटी पे तू भी खरा नहीं उतरा ।
***
जब छुआ होगा उसने फूलों को ।
होश खुशबू के उड़ गए होंगे ।
***
चेहरे से न जानेगा आवाज़ से जानेगा ।
हर शख्स मुझे मेरे अंदाज़ से जानेगा ।
***
उन्हें बताओ बुजुर्गों का है करम इस पर ।
हिलाल अच्छा सुखनवर इसी लिए तो है ।
***
कुछ और दे न पाए ज़माने को हम हिलाल ।
पैगामे अम्न देंगे इसी शायरी से हम ।
***
हिलाल और ज़्यादा हो तेरा ज़ोरे कलम ।
ये शायरी तेरी दिल की ज़बान तक पहुंची ।
- तअर्रुफ़
- मैं दूर होकर भी रहता हूं सबकी नज़रों में ।
खुदा के फजल से कैसा मक़ामे हस्ती है ।
हिलाल इसलिए रौशन है बज़्मे आलम में ।
किसी के नूर की इस पर जो सरपरस्ती है । - मुलाक़ात
क़ल्ब ने पाई है राहत आपसे मिलने के बाद ।
हो गई ज़ाहिर मुहब्बत आपसे मिलने के बाद ।
ये इनायत है नवाजिश है करम है आपका ।
बढ़ गई है मेरी इज्जत आपसे मिलने के बाद । - किरदार चाँद का
होने को हुआ करती है हर बात में तरमीम ।
जो काबिले तारीफ है उसकी नहीं ताज़ीम ।
आसान नहीं चाँद सा किरदार बनाना ।
ख़ुद दाग़ रखे और उजाला करे तक़सीम । - मुद्दतों के बाद
हम तुमसे मिल रहे हैं बड़ी मुद्दतों के बाद ।
दो फूल खिल रहे हैं बड़ी मुद्दतों के बाद ।
जुम्बिश हुई लबों को तो महसूस ये हुआ ।
ये होंठ हिल रहे हैं बड़ी मुद्दतों के बाद । - शोहरत
दर्द से दूर हो रहा हूँ मैं ।
कितना मसरूर हो रहा हूँ मैं ।
हो रही है मुख़ालिफत जितनी ।
उतना मशहूर हो रहा हूँ मैं । - नींद
बेक़रारी में मुब्तिला था मैं ।
ज़िन्दगी भर न सो सका था मैं ।
नींद आयी है क़ब्र में आकर ।
उम्र भर का थका हुआ था मैं । - किरदार
दिखाई देगा जो किरदार मे रखा होगा ।
ये मालो जर तेरा बेकार में रखा होगा ।
तूझे खबर नहीं मसरूफियत में दुनिया की ।
तेरा कफन इसी बाजार में रखा होगा । - मिट्टी
हर इक इंसां को करना चाहिए सम्मान मिट्टी का ।
कि चलता फिरता पुतला है हर इक इंसान मिट्टी का ।
हमारा घर भी मिट्टी का हमारी कब्र मिट्टी की ।
यूँ मर कर भी उतर सकता नहीं एहसान मिट्टी का । - माँ
मेहनत के बावजूद जो पहुंचा मैं अपने घर ।
वालिद का ये सवाल कमाया है तूने कुछ ।
बीवी को बच्चों को फरमाइशों की ज़िद ।
बस माँ को ये ख़्याल कि खाया है तूने कुछ । - बिस्तर
बेचैन मेरी याद से ऐसे हुए हो तुम ।
आराम तर्क करके टहलते रहे हो तुम ।
बिस्तर की सिलवटों से महसूस ये हुआ ।
कुछ देर पहले उठ के यहां से गए हो तुम । - मुहब्बत
काश जुगनू ही कोई मिल जाता ।
तीरगी मेरे घर नहीं आती ।
उसको सब कुछ दिखाई देता है ।
बस मुहब्बत नज़र नहीं आती । - इम्तिहान
शक अगर हो तुम्हें मुहब्बत पर ।
इश्क़ का इम्तिहान ले लीजे ।
आप ही के लिए सजाया है ।
मेरे दिल का मकान ले लीजे । - शिकवा
ये बोला आँख से आँसू कि माँ ये क्या किया तूने ।
हमारी किस ख़ता का इस तरह बदला लिया तूने ।
कभी औलाद को अपनी जुदा माँ तो नहीं करती ।
फिर अपने लाल को क्यूँ घर से बेघर कर दिया तूने । - जवाबे शिकवा
ये बोली आँख आँसू से जुदा बस यूँ किया तुझको ।
बुलंदी पर पहुंचने का दिया है रास्ता तुझको ।
अगर तू साथ रहता तो तेरी क्या अहमियत होती ।
ज़मीं पे गिरके ही तो मर्तबा आला मिला तुझको । - मोहब्बत के आंसू
तेरे फ़िराक़ से बेचैन जब भी होता हूं।
तुझे ख्याल में लाकर सुकून मिलता है।
अजीब लुत्फ मोहब्बत के आंसुओ में है।
कभी कभी तो बहाकर सुकून मिलता है। - बेगानगी
गमों के साए में रहकर बसर यू ज़िन्दगी कर ली ।
कि अपना दिल जलाकर अपने घर में रोशनी कर ली ।
नज़र आने लगी बेगानगी जब से रफीको में ।
तो हमने एक बेगाने से अपनी दोस्ती कर ली । - ईद मुबारक
ये आरजू मेरे दिल को मुफीद हो जाए ।
खुले जो आंख अजीजो की दीद हो जाए ।
” हिलाल ” मुल्क में आएं मसरतें इतनी ।
मेरे वतन के हर इंसां की ईद हो जाए । - ईद का चाँद
जितनी शिद्दत से ये जहां वाले ।
ईद का इंतजार करते हैं ।
उतनी शिद्दत से हम सनम तेरी ।
दीद का इंतजार करते हैं । - जज्बात
प्यार का जज़्बा मर नहीं सकता ।
जख्म ऐसा है भर नहीं सकता ।
वो मुहब्बत नहीं रही लेकिन ।
उससे नफरत तो कर नहीं सकता । - बेरुखी
तुम मेरी चाहतों का असर देख लो।
अपनी बदली हुई रहगुजर देख लो।
बेरुखी का गिला सिर्फ मुझसे ही क्यूँ ।
अपनी नजरों को भी इक नजर देख लो। - फ़लसफ़ा
न तुझसे अलग हूं न तुझसे जुदा हूं।
भला हूँ बुरा हूं मैं जो हूं तेरा हूं।
समझना मुझे इतना आसां नहीं है।
पहेली नहीं हूं मैं इक फलसफा हूं। - दर्द
मेरी उल्फत का फसाना कैसे भी लिख लीजिए ।
दर्द ही उनवान होगा कैसे भी लिख लीजिए ।
दर्द आखिर दर्द है ये तो बदलता ही नहीं।
चाहे उल्टा चाहे सीधा कैसे भी लिख लीजिए । - काली आंखे
जो मुझे देखने नहीं थे कभी।
ख्वाब वो बेहिसाब क्यूँ देखे।
मेरी आंखें तो काली काली थीं।
मैंने रंगीन ख्वाब क्यों देखे। - फुरकत
कुछ इस अदा से छुपाए हूं अपने दर्दो गम।
मेरी उदासी जहां को हंसी सी लगती है।
बिछड़ के तुझसे ये आलम है जिंदगानी का।
तेरे बगैर खुशी भी बुरी सी लगती है। - महफ़िल
उससे बिछड़ के ऐसे मेरा दिल उदास है।
जैसे बिछड़ के मौज से साहिल उदास है।
मैं कर रहा हूं इसलिए हंसने की कोशिशें।
मुझको उदास देखके महफिल उदास है। - तकलीफ
कोई पूछे जुदा क्यों हो खुदा का फैसला कहना।
जिसे तुम प्यार करते हो उसे क्या बेवफा कहना।
मेरी अच्छाइयों पर गौर करना भी जरूरी है।
बहुत तकलीफ देता है तुम्हारा यू बुरा कहना। - सजा
वो मुझसे पूछ रहे हैं कि मुददआ क्या है।
मैं कह रहा हूं बताने से फायदा क्या है।
कसूरवार तो ठहरा दिया मोहब्बत में।
अब इतना और बता दीजिए सजा क्या है। - साकिया
जामो मीना न दे ना सागर दे ।
साक़िया मूझपे इक नजर कर दे।
कुछ पलो की रफाकतें मत रख ।
साथ अगर दे तो ज़िन्दगी भर दे । - क़ुर्बतें
कुरबतो में तो कुरबतें ही रहीं।
फासलों में भी फासले ना हुए।
तेरा होना भी कैसा होना था।
तेरे होकर भी हम तेरे ना हुए। - इश्क़
गवारा जो न करना था गवारा कर लिया उसने।
मोहब्बत के उसूलों से किनारा कर लिया उसने।
अभी तक ये सुना था इश्क़ बस इक बार होता है।
मगर सुनने में आया है दुबारा कर लिया उसने। - कीमत
क्या मुहब्बत निभाई है मैंने।
दिल पे खुद चोट खाई है मैंने।
इतने भी कीमती नहीं थे तुम।
जितनी कीमत चुकाई है मैंने। - मंज़िल
नहीं मंज़िल कोई वो रास्ता है।
तुम्हे तुमसे ज्यादा सोचता हूं।
मोहब्बत अब भी मेरी कम नहीं है।
तुम्हे चाहा था तुमको चाहता हूं। - हिसाबे इश्क़
प्यार में फासला न आ जाए।
अब कभी तुम लड़ाई मत करना।
इश्क में कब हिसाब होता है।
तुम इकाई दहाई मत करना। - छुट्टी का काम
लोग त्यौहार मनाने में लगे रहते हैं।
दोस्त इतवार मनाने में लगे रहते हैं।
अपनी छुट्टी भी मनाने में गुजर जाती है।
हम तो बस यार मनाने में लगे रहते हैं। - रुक जा
चंद लम्हात के मेहमान जरा देर तो रुक।
यूँ ना कर मुझको परेशान जरा देर तो रुक।
तेरे जाने के तसव्वुर से परेशां हूं मैं।
मान भी जा ऐ मेरी जान जरा देर तो रुक। - महक
जाने तहरीर हो लफ्जों के मआनी की तरह।
तुम फरामोश नहीं होगे कहानी की तरह।
फूल जैसे किसी इंसां से मिले हो शायद।
तुम जो महके हुए हो रात की रानी की तरह। - अल्लामा इक़बाल
इक़बाल का इकबाल बुलंदी पे रहेगा।
इक नामाए आमाल बुलंदी पे रहेगा।
पैदाइशे इकबाल पे कहने लगी उर्दू ।
अब मेरा नया साल बुलंदी पर रहेगा। - शकील बदायूँनी
तेरे कलामे तगज़्जुल की जान कायम है।
तेरे वजूद का अब तक गुमान कायम है।
बढ़ाया है तेरे नग़मों ने मौसिकी का वकार।
शकील तुझसे बदायूं की शान कायम है। - जख्म
मेरे ख्वाबों को हकीकत भी तो दे सकते हो।
ग़फ़लतें छोड़ के चाहत भी तो दे सकते हो।
ये जरूरी तो नहीं ज़ख्म ही बख्शो मुझको।
तुम किसी रोज मोहब्बत भी तो दे सकते हो। - हिज्र
तुम्हारे हिज्र में ये नब्ज़ सर्द रहती है ।
इसी लिए तो मेरी शक्ल ज़र्द रहती है ।
कभी तो नजरे करम मेरे दिल पे कर दीजे ।
कि मेरे आईनए दिल पे गर्द रहती है । - सफर
जरूरत के सबब निकले हैं घर से।
सभी की जी हुजूरी कर रहे हैं।
मुकद्दर में हमारे कब है बिस्तर ।
सफर में नींद पूरी कर रहे हैं । - हिंदी उर्दू
हमारे देश की ऐ दोस्तो तहज़ीब कहती है।
यहां हर भाषा सबके दिल की धड़कन बन के रहती है।
सगी बहनों का रिश्ता है यहां हिंदी में उर्दू में।
यह गंगा भी बहती है यहां जमुना भी बहती है। - बदनामी
मेरी रुसवाई करके तुम मुझे इनआम दे देते।
अगर मुझसे शिकायत थी कोई इल्जाम दे देते।
वफा तो कर न पाए बेवफाई भी न कर पाए।
कोई इक काम तो तुम ठीक से अंजाम दे देते। - रुसवा
गुलो का चेहरा जो उतरा हुआ है।
मोहब्बत में कोई रुसवा हुआ है।
वफा करके मिली है बेवफाई।
चलो जो भी हुआ अच्छा हुआ है। - मशवरा
जो तेरे मशवरे दरकार हो गए होते।
हमारी मात के आसार हो गए होते।
तेरा ही हाथ रहा कश्तियां डुबोने में।
जो तु न होता तो हम पार हो गए होते। - साहिबे मसनद
तू हमारी वजह से ही साहिबे मसनद है आज।
हम जो चाहें तेरी दस्तार भी ले सकते हैं।
इम्तहाने सब्र मत ले खूगरे जुल्मों सितम।
हम कलम को छोड़कर तलवार भी ले सकते हैं। - हम वतन
तुम अजनबी तो नहीं मेरे हमवतन तुम हो।
तुम्हारे ज़िक्र से दिल को करार आता है।
यही बहुत है मुझे तुम भी हो बदायूँनी
मुझे तो शहर की निस्बत से प्यार आता है। - काविशें
दुनिया वाले कह रहे हैं साजिशों से पाई है।
हमने ये जिंदादिली तो ख्वाहिशों से पाई है।
कामयाबी पर हमारी जल रहा है क्यों जहां।
कामयाबी हमने अपनी काविशो से पाई है। - तहज़ीब
मैं जो भी हूँ मुहब्बत की परस्तिश कर रहा हूँ मैं ।
ज़माना ये समझता है कि साज़िश कर रहा हूँ मैं ।
मुझे इस मुल्क की तहज़ीब को हर पल बचाना है ।
वतन में हर किसी से ये गुज़ारिश कर रहा हूँ मैं ।